Hindu Festivals
It marks the onset of the spring season and the new harvest, bringing the winter season to an end. The country is all set to celebrate Makar Sankranti, one of the biggest Hindu festivals in India, which is dedicated to the Sun God.
Diwali is the biggest and most important festival in India. It is a national festival, like Christmas in Western countries, but it is also celebrated by some non-Hindu communities. Diwali falls in October or November, the celebrations last for 5 days, and they celebrate the triumph of good over evil.
Among the most important Hindu festivals are Makar Sankranti, Shivratri, Holi, Onam, Ganesh Chaturthi, Dussehra, and Diwali. They are celebrated throughout the country in various forms.
Hinduism is the world’s oldest religion and possibly the most complex. It’s a religion and a way of life that encompasses the many traditions, rituals, and celebrations of the people of India. It’s based on the belief that there’s one supreme force, Brahma and that the path to discovering Brahma takes you through the Hindu gods and goddesses. In this article, we’ll cover the most important Hindu celebrations.
हिन्दू धर्म के 10 चमत्कारिक मंत्र…
10 ऐसे हिन्दू मंत्र जो हर संकट का अंत करेगें एवं आपके जीवन में खुशियाँ लायेगें।
‘मंत्र’ का अर्थ होता है मन को एक तंत्र में बांधना। यदि अनावश्यक और अत्यधिक विचार उत्पन्न हो रहे हैं और जिनके कारण चिंता पैदा हो रही है, तो मंत्र सबसे कारगर औषधि है। आप जिस भी ईष्ट की पूजा, प्रार्थना या ध्यान करते हैं उसके नाम का मंत्र जप सकते हैं।
मंत्र 3 प्रकार के हैं- सात्विक, तांत्रिक और साबर। सभी मंत्रों का अपना-अलग महत्व है। प्रतिदिन जपने वाले मंत्रों को सात्विक मंत्र माना जाता है। आओ जानते हैं ऐसे कौन से मंत्र हैं जिनमें से किसी एक को प्रतिदिन जपना चाहिए जिससे मन की शक्ति ही नहीं बढ़ती, बल्कि सभी संकटों से मुक्ति भी मिलती है।
पहला मंत्र :
क्लेशनाशक मंत्र : कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:॥
मंत्र प्रभाव : इस मंत्र का नित्य जप करने से कलह और क्लेशों का अंत होकर परिवार में खुशियां वापस लौट आती हैं।
दूसरा मंत्र :
शांतिदायक मंत्र : श्री राम, जय राम, जय जय राम
मंत्र प्रभाव : हनुमानजी भी राम नाम का ही जप करते रहते हैं। कहते हैं राम से भी बढ़कर श्रीराम का नाम है। इस मंत्र का निरंतर जप करते रहने से मन में शांति का प्रसार होता है, चिंताओं से छुटकारा मिलता है तथा दिमाग शांत रहता है। राम नाम के जप को सबसे उत्तम माना गया है। यह सभी तरह के नकारात्मक विचारों को समाप्त कर देता है और हृदय को निर्मल बनाकर भक्ति भाव का संचार करता है।
तीसरा मंत्र :
चिंता मुक्ति मंत्र : ॐ नम: शिवाय।
मंत्र प्रभाव : इस मंत्र का निरंतर जप करते रहने से चिंतामुक्त जीवन मिलता है। यह मंत्र जीवन में शांति और शीतलता प्रदान करता है। शिवलिंग पर जल व बिल्वपत्र चढ़ाते हुए यह शिव मंत्र बोलें व रुद्राक्ष की माला से जप भी करें। तीन शब्दों का यह मंत्र महामंत्र है।
चौथा मंत्र :
संकटमोचन मंत्र : ॐ हं हनुमते नम:।
मंत्र प्रभाव : यदि दिल में किसी भी प्रकार की घबराहट, डर या आशंका है तो निरंतर प्रतिदिन इस मंत्र का जप करें और फिर निश्चिंत हो जाएं। किसी भी कार्य की सफलता और विजयी होने के लिए इसका निरंतर जप करना चाहिए। यह मंत्र आत्मविश्वास बढ़ाता है। हनुमानजी को सिंदूर, गुड़-चना चढ़ाकर इस मंत्र का नित्य स्मरण या जप सफलता व यश देने वाला माना गया है। यदि मृत्युतुल्य कष्ट हो रहा है, तो इस मंत्र का तुरंत ही जप करना चाहिए।
पांचवां मंत्र :
- ॐ नमो नारायण। या श्रीमन नारायण नारायण हरि-हरि।
- त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।।
- त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव। त्वमेव सर्व मम देवदेव।।
मंत्र प्रभाव : भगवान विष्णु को जगतपालक माना जाता है। वे ही हम सभी के पालनहार हैं इसलिए पीले फूल व पीला वस्त्र चढ़ाकर उक्त किसी एक मंत्र से उनका स्मरण करते रहेंगे, तो जीवन में सकारात्मक विचारों और घटनाओं का विकास होकर जीवन खुशहाल बन जाएगा। विष्णु और लक्ष्मी की पूजा एवं प्रार्थना करते रहने से सुख और समृद्धि का विकास होता है।
छठा मंत्र :
मृत्यु पर विजय के लिए महामृंत्युजय मंत्र :
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिंपुष्टिवर्द्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धानान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।
मंत्र प्रभाव : शिव का महामृंत्युजय मंत्र मृत्यु व काल को टालने वाला माना जाता है इसलिए शिवलिंग पर दूध मिला जल, धतूरा चढ़ाकर यह मंत्र हर रोज बोलना संकटमोचक होता है। यदि आपके घर का कोई सदस्य अस्पताल में भर्ती है या बहुत ज्यादा बीमार है तो नियमपूर्वक इस मंत्र का सहारा लें। बस शर्त यह है कि इसे जपने वाले को शुद्ध और पवित्र रहना जरूरी है अन्यथा यह मंत्र अपना असर छोड़ देता है।
सातवां मंत्र
सिद्धि और मोक्षदायी गायत्री मंत्र :
।।ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।।
अर्थ : उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
मंत्र प्रभाव : यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंत्र है, जो ईश्वर के प्रति, ईश्वर का साक्षी और ईश्वर के लिए है। यह मंत्रों का मंत्र सभी हिन्दू शास्त्रों में प्रथम और ‘महामंत्र’ कहा गया है। हर समस्या के लिए मात्र यह एक ही मंत्र कारगर है। बस शर्त यह है कि इसे जपने वाले को शुद्ध और पवित्र रहना जरूरी है अन्यथा यह मंत्र अपना असर छोड़ देता है।
आठवां मंत्र :
समृद्धिदायक मंत्र : ॐ गं गणपते नम:।
मंत्र प्रभाव : भगवान गणेश को विघ्नहर्ता माना गया है। सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत में श्री गणेशाय नम: मंत्र का उत्चारण किया जाता है। उक्त दोनों मंत्रों का गणेशजी को दूर्वा व चुटकीभर सिंदूर व घी चढ़ाकर कम से कम 108 बार जप करें। इससे जीवन में सभी तरह के शुभ और लाभ की शुरुआत होगी।
नौवां मंत्र :
अचानक आए संकट से मुक्ति हेतु : कालिका का यह अचूक मंत्र है। इसे माता जल्द से सुन लेती हैं, लेकिन आपको इसके लिए सावधान रहने की जरूरत है। आजमाने के लिए मंत्र का इस्तेमाल न करें। यदि आप काली के भक्त हैं तो ही करें।
1 : ॐ कालिके नम:।
2 : ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा।
मंत्र प्रभाव : इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करने से आर्थिक लाभ मिलता है। इससे धन संबंधित परेशानी दूर हो जाती है। माता काली की कृपा से सब काम संभव हो जाते हैं। 15 दिन में एक बार किसी भी मंगलवार या शुक्रवार के दिन काली माता को मीठा पान व मिठाई का भोग लगाते रहें।
दसवां मंत्र :
दरिद्रतानाशक मंत्र : ॐ ह्रीं ह्रीं श्री लक्ष्मी वासुदेवाय नम:।
मंत्र प्रभाव : इस मंत्र की 11 माला सुबह शुद्ध भावना से दीप जलाकर और धूप देकर जपने से धन, सुख, शांति प्राप्त होती है। खासकर धन के अभाव को दूर करने के लिए इस मंत्र का जप करना चाहिए।
होली
होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज विश्वभर में मनाया जाने लगा है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। यह प्रमुखता से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता है। यह त्यौहार कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू लोग रहते हैं वहाँ भी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन, जिसे प्रमुखतः धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन इसके अन्य नाम हैं, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं।
राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है। गुझिया होली का प्रमुख पकवान है जो कि मावा (खोया) और मैदा से बनती है और मेवाओं से युक्त होती है इस दिन कांजी के बड़े खाने व खिलाने का भी रिवाज है। नए कपड़े पहन कर होली की शाम को लोग एक दूसरे के घर होली मिलने जाते है जहाँ उनका स्वागत गुझिया,नमकीन व ठंडाई से किया जाता है। होली के दिन आम्र मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा माहात्म्य है।
इतिहास
होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता था। वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया है।
राधा-श्याम गोप और गोपियों की होली
इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इनमें प्रमुख हैं, जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र। नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है। संस्कृत साहित्य में वसन्त ऋतु और वसन्तोत्सव अनेक कवियों के प्रिय विषय रहे हैं।
सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होलिकोत्सव केवल हिंदू ही नहीं मुसलमान भी मनाते हैं। सबसे प्रामाणिक इतिहास की तस्वीरें हैं मुगल काल की और इस काल में होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं। अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहाँगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है। शाहजहाँ के समय तक होली खेलने का मुग़लिया अंदाज़ ही बदल गया था। इतिहास में वर्णन है कि शाहजहाँ के ज़माने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे। मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य में दर्शित कृष्ण की लीलाओं में भी होली का विस्तृत वर्णन मिलता है।
इसके अतिरिक्त प्राचीन चित्रों, भित्तिचित्रों और मंदिरों की दीवारों पर इस उत्सव के चित्र मिलते हैं। विजयनगर की राजधानी हंपी के १६वी शताब्दी के एक चित्रफलक पर होली का आनंददायक चित्र उकेरा गया है। इस चित्र में राजकुमारों और राजकुमारियों को दासियों सहित रंग और पिचकारी के साथ राज दम्पत्ति को होली के रंग में रंगते हुए दिखाया गया है। १६वी शताब्दी की अहमदनगर की एक चित्र आकृति का विषय वसंत रागिनी ही है। इस चित्र में राजपरिवार के एक दंपत्ति को बगीचे में झूला झूलते हुए दिखाया गया है। साथ में अनेक सेविकाएँ नृत्य-गीत व रंग खेलने में व्यस्त हैं। वे एक दूसरे पर पिचकारियों से रंग डाल रहे हैं। मध्यकालीन भारतीय मंदिरों के भित्तिचित्रों और आकृतियों में होली के सजीव चित्र देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए इसमें १७वी शताब्दी की मेवाड़ की एक कलाकृति में महाराणा को अपने दरबारियों के साथ चित्रित किया गया है। शासक कुछ लोगों को उपहार दे रहे हैं, नृत्यांगना नृत्य कर रही हैं और इस सबके मध्य रंग का एक कुंड रखा हुआ है। बूंदी से प्राप्त एक लघुचित्र में राजा को हाथीदाँत के सिंहासन पर बैठा दिखाया गया है जिसके गालों पर महिलाएँ गुलाल मल रही हैं।
Buddha Purnima
Buddha Purnima, also known as Vesak or Buddha Jayanti, is one of the most important Buddhist festivals celebrated around the world. It marks the birth, enlightenment, and death of Gautama Buddha, the founder of Buddhism. The festival usually falls on the full moon day in the month of May and is observed with great reverence by Buddhists across the globe.
The day is marked by various rituals and traditions. Buddhists visit temples and monasteries to offer prayers, light candles, and incense, and listen to sermons on Buddha’s life and teachings. Many also observe fasts and perform acts of charity and kindness, as a way of paying tribute to Buddha’s compassion and wisdom.
In many countries, Buddha Purnima is celebrated with processions and cultural events. The streets are adorned with colorful decorations, and people gather to participate in parades and dances. The festival is also an occasion for families to come together and share meals, exchange gifts, and spend time in prayer and reflection.
Buddha Purnima is not only a celebration of the life and teachings of Gautama Buddha, but also a reminder of the values of compassion, peace, and wisdom that he embodied. It is a time for introspection and self-reflection and an opportunity for people to renew their commitment to leading a more mindful and compassionate life.
हिन्दू को अपना धर्म क्यों नहीं छोड़ना चाहिए और इस धर्म के क्या सिद्धान्त
हिंदू को अपना धर्म नहीं छोड़ना चाहिए, बल्कि धर्म को उसकी उचित सीमा में रखकर समाज को आगे बढ़ने की आजादी देनी चाहिए। भारत में सभी सुधारकों ने पुरोहितवाद और पतन की सभी भयावहताओं के लिए धर्म को जिम्मेदार ठहराने की गंभीर गलती की और अविनाशी संरचना को गिराने के लिए आगे बढ़े, और परिणाम क्या हुआ? असफलता! बुद्ध से लेकर राम मोहन राय तक, सभी ने जाति को एक धार्मिक संस्था मानने की गलती की और धर्म और जाति को एक साथ नीचे गिराने की कोशिश की, और असफल रहे। लेकिन पुरोहितों के तमाम प्रलापों के बावजूद, जाति महज एक ठोस सामाजिक संस्था है, जो अपनी सेवा करने के बाद अब भारत के वातावरण को अपनी दुर्गंध से भर रही है, और इसे लोगों को उनकी खोई हुई सामाजिकता वापस लौटाकर ही दूर किया जा सकता है। वैयक्तिकता. यहां पैदा हुआ हर आदमी जानता है कि वह एक आदमी है। भारत में जन्मा हर आदमी जानता है कि वह समाज का गुलाम है। अब, स्वतंत्रता ही विकास की एकमात्र शर्त है; उसे उतार दो, परिणाम पतन है। आधुनिक प्रतिस्पर्धा के आगमन के साथ, देखिये जाति किस प्रकार तेजी से लुप्त हो रही है! इसे मारने के लिए अब किसी धर्म की जरूरत नहीं है. उत्तरी भारत में ब्राह्मण दुकानदार, मोची और शराब बनाने वाले आम हैं। और क्यों? प्रतिस्पर्धा के कारण. वर्तमान सरकार के तहत किसी भी व्यक्ति को अपनी आजीविका के लिए कुछ भी करने से प्रतिबंधित नहीं किया गया है, और इसका परिणाम गर्दन और गर्दन की प्रतिस्पर्धा है, और इस प्रकार हजारों लोग नीचे की ओर वनस्पति करने के बजाय उस उच्चतम स्तर की तलाश कर रहे हैं जिसके लिए वे पैदा हुए थे। आधुनिक प्रतिस्पर्धा के आगमन के साथ, देखिये जाति किस प्रकार तेजी से लुप्त हो रही है! इसे मारने के लिए अब किसी धर्म की जरूरत नहीं है. उत्तरी भारत में ब्राह्मण दुकानदार, मोची और शराब बनाने वाले आम हैं। और क्यों? प्रतिस्पर्धा के कारण. वर्तमान सरकार के तहत किसी भी व्यक्ति को अपनी आजीविका के लिए कुछ भी करने से प्रतिबंधित नहीं किया गया है, और इसका परिणाम गर्दन और गर्दन की प्रतिस्पर्धा है, और इस प्रकार हजारों लोग नीचे की ओर वनस्पति करने के बजाय उस उच्चतम स्तर की तलाश कर रहे हैं जिसके लिए वे पैदा हुए थे। आधुनिक प्रतिस्पर्धा के आगमन के साथ, देखिये जाति किस प्रकार तेजी से लुप्त हो रही है! इसे मारने के लिए अब किसी धर्म की जरूरत नहीं है. उत्तरी भारत में ब्राह्मण दुकानदार, मोची और शराब बनाने वाले आम हैं। और क्यों? प्रतिस्पर्धा के कारण. वर्तमान सरकार के तहत किसी भी व्यक्ति को अपनी आजीविका के लिए कुछ भी करने से प्रतिबंधित नहीं किया गया है, और इसका परिणाम गर्दन और गर्दन की प्रतिस्पर्धा है, और इस प्रकार हजारों लोग नीचे की ओर वनस्पति करने के बजाय उस उच्चतम स्तर की तलाश कर रहे हैं जिसके लिए वे पैदा हुए थे।
हिन्दू धर्म के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु
- ईश्वर एक नाम अनेक.
- ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है।
- ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें.
- हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर.
- हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है।
- धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं।
- परोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है।
- जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है।
- स्त्री आदरणीय है।
- सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है।
- हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में.
- पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता.
- हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी.
- आत्मा अजर-अमर है।
- सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र.
- हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं।
- हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना गया है।
- हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है।